हिंदी कहानी - मूर्ति में भगवान दिखाई देना (Hindi Story - To see God in statue)

To see God in statue

English version of this story is available at homestorybox.com

एक बार एक राजा था। वह भगवान में तो विश्वास करता था परन्तु मूर्ति पूजा में उसका बिल्कुल भी विश्वास न था।  उसका मानना था की पत्थर की मूर्ति में भगवान नहीं हो सकते। उसकी इसी नीति के कारण मंदिरों में भी राजकीय योगदान नहीं के बराबर था तथा राज्य के मंदिर बहुत जर्जर अवस्था में थे। 

एक महात्मा का उस राज्य में आगमन हुआ। उन्होंने देखा कि वैसे तो नगर काफी खुशहाल था परन्तु मंदिर बहुत जीर्ण शीर्ण अवस्था में थे। यह देखकर उनको बहुत दुःख हुआ। उनको लगा की कहीं वहां के सभी लोग नास्तिक तो नहीं हैं। आखिरकार उन्होंने एक मंदिर के पुजारी से इसका कारण पूछा। पुजारी ने उन्हें राजा की सोच से अवगत कराया। महात्मा ने राजा से मिलने का निश्चय किया। नगर वासियों ने महात्मा को बहुत समझाया कि राजा से मिलने का कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि पहले भी बहुत सारे लोग राजा से मिलकर उसको समझाने का प्रयास कर चुके हैं , पर उनको निराशा ही हाथ लगी है। किन्तु महात्मा निर्णय कर चुके थे। वे राजा के महल की ओर चल पड़े।

शायद आप पढ़ना चाहें : तुलसीदास जी का श्री राम से मिलन (When Tulsidasa Met Lord Shree Ram)

महात्मा राजा के दरबार पहुंचे।  राजा ने उनका स्वागत सत्कार किया और उन्हें आसान प्रदान किया। राजा ने महात्मा से उनके आगमन का कारण पूछा तो महात्मा ने राजा से मूर्ति पूजा विषय पर बात करने की इच्छा प्रकट की। बातचीत शुरू हुई और शीघ्र ही बहस में बदल गयी , महात्मा ने राजा को समझाने की बहुत कोशिश की परन्तु राजा तो जैसे कुछ भी समझने को तैयार ही न था। वह किसी भी तरह से स्वीकार नहीं कर रहा था कि उसकी सोच में कुछ त्रुटि है और अजीब अजीब तर्कों से अपनी गलत बात को भी सही सिद्ध करने की कोशिश कर रहा था । शीघ्र ही महात्मा को राजा से बात कर के अनुभव हुआ की राजा अवश्य ही कहीं ना कहीं दिग्भ्रमित है तथा उसे और समझाना व्यर्थ है। तब उन्होंने टेढ़ी उंगली से घी निकालने की ठानी।

उन्होंने राजा से पूछा कि उसके पिता कहाँ हैं, वे उनसे कुछ बात करना चाहते हैं । राजा ने उनको बताया कि उसके पिता का स्वर्गवास हो चुका है। महात्मा ने बड़ा ही शोक प्रकट करते हुए पूछा कि क्या राजा के पास उनका कोई चित्र है। राजा के हाँ में जवाब देने पर महात्मा ने उस चित्र तो दरबार में लाने का अनुरोध किया जो कि राजा ने स्वीकार कर लिया। सभी दरबारी दोनों की बातचीत ध्यान से सुन रहे थे और महात्मा के ज्ञान की भूरी भूरी प्रशंसा भी कर रहे थे।

शायद आप पढ़ना चाहें : हिन्दू धर्म की 10 विशेषताएं (10 Unique Things About Hinduism)

चित्र दरबार में लाया गया। वह एक भव्य चित्र था। सभी दरबारी  चकित थे कि महात्मा राजा की पिता के चित्र का क्या करेंगे। तभी महात्मा ने राजा से उस चित्र पर थूकने का अनुरोध किया। राजा क्रोधित हो उठा। परन्तु राजा ने अपने क्रोध को काबू करते हुए , उस चित्र पर थूकने से मना कर दिया। राजा ने कहा कि वह अपने पिता के चित्र पर कैसे थूक सकता है। महात्मा ने उसे समझाया की उसे केवल एक चित्र पर थूकना है , अपने पिता पर नहीं। परन्तु राजा ने कहा कि वह उस चित्र पर नहीं थूक सकता क्योंकि उसे उस चित्र में उसके पिता दिखाई देते हैं।  तब महात्मा ने उससे कहा की जिस प्रकार उसे इस चित्र में उसके पिता दिखाई देते हैं , उसी प्रकार एक मूर्ति पूजा करने वाले व्यक्ति को मूर्ति में भगवान दिखाई देते हैं। मूर्ति पूजा करना या भगवान को निराकार मान कर पूजा करना केवल पूजा करने की दो पद्यतियाँ हैं जिनका उद्देशय समान है , सर्वशक्तिमान भगवान की पूजा करना।

राजा को बात समझ में आ गयी।  उस दिन के बाद उसने मूर्ति पूजा का विरोध नहीं किया और उसने राज्य के मंदिरों के जीर्णोद्धार का भी निश्चय किया। प्रजा ने राजा की सोच में आये सुधार के लिए महात्मा को ह्रदय से धन्यवाद दिया।

English version of this story is available at homestorybox.com

और कहानियाँ पढ़ें :

हिंदी एवं संस्कृत के कथन जो भारतीय संस्कृति तो दर्शाते हैं (Quotes in Hindi and Sanskrit Showing Values of Indian Culture)

भगवान श्री कृष्ण (Lord Shri Krishna)

भगवान बुद्ध (Lord Buddha)

हिंदी कहानी - दानवीर कर्ण - सूखी लकड़ियाँ (Hindi Story - Daanveer Karna - Sookhi Lakadiya) 


English Version of this story is available at www.homestorybox.com


मित्रो , यदि आपके पास कोई अच्छी कहानी है जो आप इस ब्लॉग पर प्रकाशित करना चाहते हैं तो मुझे rekhashar76@gmail.com पर बताएं। Friend, if you have any good story which you wish to publish at this blog, then please let me know at rekhashar76@gmail.com