एक बार की बात है , बहुत ठंड का मौसम था। ठंड के मारे बादशाह अकबर की घिघ्घी बंधी हुई थी। अकबर ने देखा कि बीरबल और बाकी दरबारी भी ठंड के मारे कंपकपा रहे थे। उनको देखकर अकबर ने कहा , "क्या कोई इतनी ठंड में रात भर यमुना के ठंडे पानी में खड़ा रह सकता है। " अकबर का प्रश्न सुनकर जैसे राजसभा में सबको सांप सूंघ गया। कोई कुछ नहीं बोला परन्तु सभी का दिमाग यह समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर बादशाह के ऐसा कहने के पीछे उनका आशय क्या है। अपने प्रश्न पर सबको असमंजस में पड़ा देखकर मन ही मन अकबर बहुत प्रसन्नता हुई। उसने परिस्थिति से थोड़ा और स्वाद लेने की सोची और कहा , " जो कोई भी ऐसा करेगा , यानि कि पूरी रात यमुना नदी के ठन्डे जल में खड़ा रहेगा उसको मैं एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ दूँगा। सभी दरबारी पहले से ही समझ नहीं पा रहे थे कि बादशाह आखिर चाहते क्या हैं , वो एक हजार स्वर्ण मुद्राओं का ईनाम सुनकर और हैरान हो गए। अकबर अभी मन ही मन अपनी पींठ थपथपा ही रहा था की दरबार में से एक आदमी आगे बढ़ा और उसने बादशाह की चुनौती स्वीकार कर ली। अकबर ने भी तुरंत आदेश दिया कि उसी रात यह चुनौती पूरी की जाये।
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रात को सैनिकों के पहरे के बीच वह आदमी , यमुना नदी के अति ठंडे पानी में खड़ा हो गया और सफलता पूर्वक खड़ा रहा। सुबह होते ही सैनिको ने उसे बादशाह के समक्ष प्रस्तुत किया और बादशाह को यह निश्चित किया कि उनकी निगरानी में वह व्यक्ति पूरी रात यमुना के ठन्डे जल में खड़ा रहा है। अकबर को यह सुनकर बहुत हैरानी हुई। उसने सोचा न था कि कोई उसकी इतनी कठिन चुनौती जीत सकता है। आखिर उसने उस व्यक्ति से पूछा कि उसने यह कारनामा कैसे किया। उस व्यक्ति ने कहा, "महाराज , यमुना के किनारे दूर एक मस्जिद में एक दिया जल रहा था , मैं उसको देखकर सारी रात उस बर्फ जैसे ठन्डे पानी में खड़ा रहा।" यह सुनकर अकबर की त्योरियां चढ़ गयीं। उसने गुस्से से कहा , "तो तुम उस दिये से गर्मी लेते रहे , इसी वजह से तुम यह कारनामा कर पाए। क्योंकि तुम्हें दिये से गर्मी मिल रही थी , इसलिए तुम्हें सफल नहीं माना जाएगा और तुम इनाम के हक़दार नहीं हो। चले जाओ यहाँ से वार्ना तुम्हें दंड दिया जा सकता है। "वह व्यक्ति बादशाह का क्रोध देखकर डर गया और चला गया। सारे दरबारी भी यह देखकर सहम गए।
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वह व्यक्ति दुखी होकर सहायता माँगने के लिए शाम को बीरबल के घर गया। बीरबल तो खुद उस समय दरबार में मौजूद थे और सारी बात जानते थे। बीरबल सहित बहुत से दरबारी यह मानते थे कि बादशाह ने नाइंसाफी की है पर बादशाह के क्रोध के सामने कुछ कह न सके। बीरबल ने उस व्यक्ति को घर जाने के लिए कहा और आश्वासन दिया की वो उसको न्याय दिलाने के लिए अवश्य ही कुछ करेंगे। वह व्यक्ति बीरबल के आश्वासन से संतुष्ट होकर चला गया।
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अगले दिन बीरबल राजदरबार में नहीं पहुंचे और उन्होंने संदेशा भिजवा दिया की उनको खिचड़ी बनाने में देर हो रही है, इसलिए वो दरबार में न आ सकेंगे। अकबर ने सुनकर सहमति में सिर हिला दिया। अगले दिन अकबर को फिर दरबार में बीरबल नहीं दिखाई दिए। अकबर ने बीरबल के बारे में पूछा। किसी के पास कोई जवाब न था। यह देखकर अकबर ने सैनिकों को बीरबल के घर जाकर उनकी कुशल क्षेम पूछने के लिए कहा। सैनिक थोड़ी देर में वापिस लौटे और उन्होंने अकबर को बताया कि बीरबल ने कहा है कि उनको खिचड़ी बनाने में देर हो रही है , जैसे ही खिचड़ी बन जाएगी , वो खाकर आ जायेंगे। अकबर को कुछ आश्चर्य हुआ किन्तु उसने नज़रअंदाज कर दिया। अगले दिन फिर बीरबल दरबार में नहीं आये। अकबर को कुछ आश्चर्य हुआ। उसने फिर सैनिकों को बीरबल के बारे में पता करने के लिए भेजा और सैनिकों ने आकर वही जवाब दिया कि बीरबल ने कहा है कि उनको खिचड़ी बनाने में देर हो रही है , जैसे ही खिचड़ी बन जाएगी , वो खाकर आ जायेंगे। अकबर को कुछ समझ में नहीं आया कि बीरबल ऐसी कौन सी खिचड़ी बना रहे हैं जो तीन दिन में भी नहीं बनी। आखिर अकबर से रहा नहीं गया और उसने बीरबल के घर जाकर खुद सारा माजरा जानने का निर्णय लिए। बादशाह दरबारियों सहित चल पड़े बीरबल के घर।
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बीरबल के घर का दृश्य देखकर अकबर और दरबारियों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। रसोई में नीचे फर्श पर कुछ लकड़ियों में आग लगी हुई थी और ऊपर छत पर एक हांडी टंगी हुई थी जिसमें शायद दाल चावल थे खिचड़ी बनाने के लिए। यह देखकर सबका माथा ठनका। अकबर ने पूछा , " यह क्या कर रहे हो बीरबल। " बीरबल हांडी की ओर देखते हुए कहा , "महाराज , खिचड़ी बना रहा हूँ। " बादशाह बोले , "तुमने नीचे फर्श पर आग जलाई हुई है और ऊपर छत पर हांडी टांगी हुई है , यह खिचड़ी कैसे बनेगी , आखिर आग की गर्मी हांडी तक कैसे पहुंचेगी। " बीरबल ने तपाक से उत्तर दिया , "क्यों नहीं महाराज , जब दूर मस्जिद में जलने वाले दिए से यमुना के ठन्डे पानी में खड़े उस व्यक्ति को गर्मी मिल सकती है तो इस फर्श पर जलने वाली आग से छत पर टंगी उस हांडी को गर्मी क्यों नहीं मिल सकती। " अकबर समझ गए कि बीरबल का इशारा किस ओर था। अकबर को अपनी गलती का अहसास हो गया। उसने दरबारियों को आदेश दिया कि कल उस व्यक्ति को दरबार में प्रस्तुत किया जाये।
अगले दिन अकबर ने उस व्यक्ति को शर्त के अनुसार एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ प्रदान कीं। अकबर सहित सभी ने बीरबल की बुद्धिमत्ता की भूरि भूरि प्रशंसा की।
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