हिंदी कहानी - बीरबल की स्वर्ग यात्रा (Hindi Story - Birbal Ki Swarg Yatra)

Hindi Story - Birbal Ki Swarg Yatra

जहाँ एक ओर लोग बीरबल की बुद्धिमत्ता का लोहा मानते थे, वहीं दूसरी ओर अकबर का चहेता होने की वजह से उनके दुश्मनों की भी कोई कमी न थी। बहुत सारे दरबारी उनको अपनी तरक्की की राह में रोड़ा मानते थे और उनको अपने रस्ते से हटाने की हर संभव कोशिश करते रहते थे। इसी कोशिश की कड़ी में उन्होंने बीरबल से छुटकारा पाना की एक योजना बनाई और इस योजना में अकबर के शाही हज्जाम यानि कि नाई को शामिल कर लिया।

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अगली सुबह जब हज्जाम अकबर की हजामत करने के लिए बैठा तो उसने रोनी सी सूरत बना रखी थी। जब अकबर ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने कहा , "महाराज मुझे कल सपने में अपने पूर्वजों के दर्शन हुए , वे काफी दुखी लग रहे थे , बस मैं इसी चिंता से दुखी हूँ। " अकबर ने पूछा , "तो क्या हमारे पूर्वज भी स्वर्ग में दुखी हो सकते हैं। हमें तो कोई सपना नहीं आया , फिर हमें उनकी खैरियत का पता कैसे लगेगा। " अकबर को अपनी बातों में आता देखकर हज्जाम मन ही मन अपनी पीठ थपथपाते हुए बोला , "महाराज यदि आपको आपके पूर्वजों ने सपने में आकर कुछ नहीं कहा तो हो सकता है वो किसी बड़ी भारी मुसीबत में हों। इस सूरत में आपको अवश्य ही किसी को भेजकर उनका हल चाल पूछना चाहिए। " अकबर ने पूछा , "क्या यह संभव है , और तुम्हारी राय में यह काम कौन कर सकता है ?" हज्जाम ने अपनी खुशी छुपाते हुए कहा , "बिलकुल संभव है महाराज , यदि कोई मरकर जाये तो आपके पूर्वजों का हाल अवश्य ही जानकर आ सकता है। मेरी राय में केवल बीरबल ही ऐसे व्यक्ति हैं जो इस काम को कर सकते हैं , क्योंकि वे ही हम सब में सबसे बुद्धिमान हैं। " अकबर को हज्जाम की बात जँच गयी।

अगले दिन भरे दरबार में अकबर ने हज्जाम से हुई अपनी मंत्रणा का जिक्र किया और बीरबल के विषय में अपना फैसला सुना दिया कि बीरबल को मरकर स्वर्ग जाकर अकबर के पूर्वजों का हाल चाल पूछ कर आना है। साथ ही बीरबल के साथ अपने पूर्वजों के लिए बहुत सारी खाद्य सामग्री और वस्त्र आभूषण आदि भेजने का आदेश भी दिया। इस काम की तारीख भी एक सप्ताह बाद की निश्चित कर दी गयी। अकबर का आदेश सुनने के पश्चात् बीरबल को काटो तो खून नहीं।

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बीरबल के शुभ चिंतकों की भी दरबार में कमी न थी। जल्दी ही बीरबल ने इस षडयंत्र के पीछे के दरबारियों और षडयंत्र के मुखौटे हज्जाम की कारस्तानी का विस्तार से ज्ञान कर लिया और सबसे पहले उस हज्जाम को सबक सिखाने की सोची। अपने मित्रों की मदद से बीरबल ने अपनी होने वाली चिता की ठीक नीचे से एक गुप्त रास्ते का निर्माण करवाया।

एक सप्ताह पश्चात् बीरबल के स्वर्ग जाने का समय भी आ पहुंचा। चिता के पास सुबह से ही देखने आने वालों का ताँता लगा हुआ था।  बहुत भारी भीड़ जमा हो चुकी थी। निश्चित समय पर सभी दरबारी और बादशाह अकबर भी आ पहुंचे। ठीक मुहूर्त पर बीरबल को सामान समेत चिता पर बिठा दिया गया और आग लगा दी। चिता के धुएँ और सामान की ओट लेकर बीरबल चतुराई पूर्वक , चिता के नीचे बनी सुरंग से होकर किसी गुप्त स्थान पर चले गए। उधर सभी लोगों ने बीरबल को चिता में जलते देखकर अश्रुपूर्ण विदाई दी।

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दो महीने पश्चात् अकबर के दरबार में एक बढ़ी हुई दाढ़ी और मूँछ वाले व्यक्ति ने प्रवेश किया। उसकी कद काठी और चाल ढाल से सबको बीरबल की याद हो आयी। और जब उसने बादशाह अकबर के समक्ष पहुंचकर प्रणाम कर के बोलना आरंभ किया तो अकबर सहित  सभी के मुँह से एक ही शब्द निकला , "बीरबल!!!" जी हाँ वह बीरबल ही थे। हैरानी पूर्वक लोग अपनी आखें मल रहे थे कि जिन बीरबल को उन्होंने अपने सामने चिता में जलते हुए देखा था वो सही सलामत उनके सामने खड़े थे। बीरबल बोले , "महाराज मैं आपके पूर्वजों से मिल आया हूँ। सब कुशल मंगल है। आपके द्वारा भेजे गए सामान को पाकर वे बहुत खुश हुए और उन्होंने आपको बहुत धन्यवाद दिया एवं आशीर्वाद दिया है। " यह सुनकर बादशाह अकबर बहुत प्रसन्न हुए। बीरबल आगे बोले , "परन्तु ?" बादशाह का माथा ठनका , "परन्तु क्या बीरबल ?" बीरबल बोले , "महाराज , वैसे तो सब आनंद ही आनंद है किन्तु वहाँ कोई हज्जाम नहीं है , सबके बाल , दाढ़ी और मूछें बढ़ गयी हैं।  उन्होंने आपसे एक हज्जाम भेजने की विशेष विनती की है। " बीरबल ने यह बात अपनी दाढ़ी और मूछों की ओर इशारा करते हुए कही। बस फिर क्या था अकबर ने तुरंत शाही हज्जाम को स्वर्ग भेजने का आदेश दे डाला। सुनकर हज्जाम के प्राण सूख गए और वो तुरंत बादशाह के पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाने लगा। गिड़गिड़ाते गिड़गिड़ाते उसने न केवल अपनी गलती स्वीकार की , बल्कि उन सभी लोगों के नाम और उनकी योजना भी बताई जिन्होंने उसे ऐसा करने के लिए कहा था। बादशाह ने सबको कारागार में डालने का हुक्म दिया और बीरबल से पूछा की वह जीवित वापिस कैसे लौट आया। और जब बीरबल ने सबको अपनी योजना बताई तो सभी बीरबल की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा करने लगे।

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