एक बार की बात है , विजयनगर में चोरों का आतंक छा गया था। प्रतिदिन चोरियां हो रहीं थी। रोज चोरियों की घटनाएँ बढ़ती जा रही थीं। राजा कृष्णदेवराय बहुत चिंतित थे। सैनिक भरसक प्रयत्न करके भी अभी तक चोरों को पकड़ने में नाकाम थे। चोर बहुत ही चतुर और चालक थे। वो चोरी करके कोई ऐसा सबूत नहीं छोड़ते थे जिससे उनका पता लगाया जा सके। अपनी सफलता और उनको पकड़ पाने में प्रशासन की नाकामी की वजह से चोरों का आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा था। अपने इसी आत्मविश्वास के चलते चोरों ने साहस की सभी सीमाएँ पार करते हुए विजयनगर के सबसे चतुर और बुद्धिमान व्यक्ति तेनालीराम को चुनौती दे डाली। चोरों ने जगह जगह विज्ञापन लगा दिए थे , जिन पर लिखा था कि जल्दी ही चोर तेनालीराम के घर चोरी करकर यह सिद्ध कर देंगे कि वो तेनालीराम से भी अधिक चतुर और चालक हैं। चोरों द्वारा लगाए ये विज्ञापन पूरे नगर में चर्चा का विषय बने हुए थे। सभी लोग यह देखने के लिए उत्सुक थे की चोरों और तेनालीराम के बीच इस विचित्र युद्ध में कौन जीतेगा।
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चोरों द्वारा लगाए गए विज्ञापनों की चर्चा राजमहल तक भी पहुँच गयी। राजा कृष्णदेवराय ने तेनालीराम से भेंट करी और उन्हें राजमहल के कार्यों से छुट्टी देकर घर की देखभाल की सलाह दे और साथ ही उनके घर पर सैनिकों का पहरा लगाने का आदेश भी दिया। तेनालीराम राजा को उनकी मदद के लिए धन्यवाद देकर घर की ओर चल पड़े। वो रास्ते भर यही सोचते रहे रहे कि इस चुनौती का सामना वो कैसे करेंगे क्योंकि इस प्रकार की स्तिथि का सामना वो जीवन में पहली बार ही कर रहे थे। अंत में उन्होंने उन चोरों का सामना बेहद साधारण तरीके से करने की सोची क्योंकि उनका मानना था कि उन बेहद चतुर और चालक चोरों को केवल उनके अति आत्मविश्वास के कारण ही हराया जा सकता था।
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इसी ऊहापोह में वो अपने घर पहुंचे। उनके घर पहुँचते ही उनकी पत्नी ने उनसे झगड़ा करना शुरू कर दिया , जो उनसे कई दिनों से बगीचे में पौधों को पानी देने में उनकी मदद करने के लिए कह रहीं थीं। उन्होंने पत्नी को आश्वस्त किया कि उन्होंने राजमहल से कुछ आदमी बुलाये हैं जो बगीचे में पौधों को पानी देने के लिए शीघ्र ही आयेंगे। फिर उन्होंने पत्नी को नगर में लगे विज्ञापनों के विषय में बताया जिनसे उनकी पत्नी अभी तक अनभिज्ञ थीं। तेनालीराम अपनी पत्नी के साथ सभी गहनों और धन को एक पोटली में इकठ्ठा करने करने में लग गए। अपने घर के बहार कुछ अनजान लोगों की उपस्तिथि उनको महसूस हो रही थी। वो जान गए थे कि चोर उनके घर के आस पास हैं और उन पर नज़र रखे हुए हैं। उन्होंने सैनिकों को छुपे रहने का आदेश दिया और ऊँची आवाज में अपनी पत्नी को कहने लगे लगे , "भागवान , ये चोर बहुत चतुर और चलाक हैं , इनके सामने मेरी बुद्धि कुछ भी नहीं है। यदि इन्होंने ठान ली तो ये चोरी अवश्य ही करेंगे। चलो इन गहनों और धन की पोटली हम कुंए में फेंक देते हैं और चोरों की चुनौती खत्म होने के बाद हम इन्हें कुँए से निकाल लेंगे। वैसे भी हमारा कुआँ उथला है , उसमें ज्यादा पानी तो है नहीं, इसलिए हमें इन्हें निकालने में ज्यादा कठिनाई नहीं होगी " यह कहकर तेनालीराम में एक पोटली में पत्थर रखकर कुँए में फेंक दी और अपनी पत्नी के साथ निश्चिन्त होकर सो गए।
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उधर आत्मविश्वास से भरे चोर अपना काम आसान होते देखकर बहुत खुश थे। अब उनके सामने चुनौती उस कुँए में से उस पोटली को निकालने की ही थी बस। जब उन्होंने आस पास नजर घुमाकर देखा तो उनको रस्सी और बाल्टी भी पास ही पड़ी दिख गयी। बस फिर क्या था , उन्होंने तेनालीराम के अनुसार उस उथले कुँए से पानी निकालकर बगीचे में उड़ेलना शुरू कर दिया। उधर तेनालीराम की पत्नी को बगीचे से कुछ आवाज आयी तो उसने तेनालीराम को जगाकर बगीचे में जाकर देखने के लिए कहा। तेनालीराम यह कहकर निश्चिन्त होकर सो गए कि उन्होंने राजदरबार से कुछ आदमी बगीचे में पेड़ पौधों को पानी देने के लिए बुलाए थे, अवश्य ही वे ही होंगे। उधर चोरों को उम्मीद थी कि कुआँ उथला होने के कारण वो जल्दी ही उसे खाली कर देंगे , परन्तु यह कुआँ था की खाली होने का नाम ही नहीं ले रहा था। अति आत्मविश्वासी चोरों ने अपनी गति बढ़ाई , परन्तु ये क्या उनको पता ही नहीं चला की कब पौ फट गयी और तेनालीराम अपनी पत्नी और सैनिकों सहित उनके पीछे आ खड़े हुए। तेनालीराम ने चोरों से कहा , "मान्यवर , मेरे बगीचे में इतनी मेहनत से पानी देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। अब आप लोगों से अनुरोध है कि आप कारागार में जाकर थोड़ा आराम भी कर लें। " इतने चतुर और चालक चोर इतने साधारण तरीके से पकडे गए और बिना कोई परिश्रम किये पौधों को पानी भी दे दिया गया , यह देखकर तेनालीराम की पत्नी बहुत प्रसन्न थी। नगर में जब लोगों को पता चला तो हर कोई तेनालीराम की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा कर रहा था।
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