निबंध - तुलसीदास का जीवन परिचय (Essay - Biography of Tulsidas in Hindi)

Tulsidas
Goswami Tulsidas

तुलसीदास (Tulsidas)

तुलसीदास, जिन्हें गोस्वामी तुलसीदास भी कहा जाता है , कलियुग के एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें पाँच भगवानों  , राम, लक्ष्मण , हनुमान , शिव और पार्वती के दर्शन प्राप्त हुए हैं। महाकवि तुलसीदास भगवान राम के परम भक्त थे। उनके अनुसार भगवान राम निर्गुण और सगुण की परिभाषा से भी परे हैं और भगवान राम का नाम लिए बिना मोक्ष की इच्छा रखना इस प्रकार है जैसे बारिश की बूंदों को पकड़कर आसमान पर जाने की इच्छा रखना। (पढ़ें : श्री राम पर कविता (Poem on Shree Ram)) तुलसीदास ने संस्कृत , अवधि और ब्रज भाषा में कई रचनाएं लिखीं। पर उनको सर्वाधिक ख्याति उनकी अवधी भाषा की सबसे विख्यात रचना , रामचरितमानस के रचयिता के रूप में मिली। हनुमान चालीसा का रचयिता भी उनको ही माना जाता है। वाराणसी में गंगा नदी के एक घाट का नाम तुलसीघाट उन्हीं के नाम पर पड़ा है। वाराणसी में जिस स्थान पर उनको हनुमान जी के दर्शन हुए उस स्थान पर उन्होंने संकटमोचन मंदिर की स्थापना की। तुलसीदास ने ही भारत रामलीलाओं की शुरुआत भी की।

तुलसीदास का पूर्व जन्म

भविष्योत्तर पुराण के अनुसार , तुलसीदास पूर्व जन्म में महर्षि बाल्मीकि थे, जिन्होंने त्रेता युग में रामायण की रचना की थी। पढ़ें : रामायण पर कविता (Poem on Ramayana) बाल्मीकि की लिखी रामायण में भगवान श्री राम का जीवन चरित्र संस्कृत भाषा में वर्णित है। एक बार भगवान राम की रावण पर विजय के पश्चात् , हनुमान जी ने महर्षि बाल्मीकि से रामायण सुनाने का आग्रह किया , जिसे बाल्मीकि जी ने टाल दिया। तब हनुमान जी हिमालय पर चले गए और वहाँ राम की भक्ति में लीन हो गए।  वहाँ उन्होंने पत्थरों और चट्टानों पर अपने नाखूनों से खुरचकर नाट्य रूप में राम कथा लिख डाली , जिसे महानाटक या हनुमान नाटक की संज्ञा दी गयी है। जब बाल्मीकि जी ने उसे पढ़ा तो बहुत दुखी हुए। उन्हें लगा कि हनुमान जी की उस उत्कृष्ट कृति के सामने उनकी रामायण को कोई नहीं पूछेगा। बाल्मीकि जी को दुखी देख , हनुमान जी बहुत दुखी हुए और उन्होंने वे पत्थर और चट्टानें समुन्द्र में फेंक दीं और बाल्मीकि जी से कहा कि वे (बाल्मीकि जी) कलियुग में तुलसीदास के नाम से जन्म लेंगे और स्थनीय भाषा में रामायण लिखेंगे। पढ़ें : कैसे मिली  बाल्मीकि को रामायण लिखने की प्रेरणा (How Balmiki got inspiration to write Ramayana)

तुलसीदास का जन्म

तुलसीदास के जन्म स्थान और जन्म वर्ष को लेकर विशेषज्ञों की राय भिन्न है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म  स्थान कासगंज उत्तर प्रदेश में सोरों नामक स्थान पर या राजापुर (चित्रकूट) में 1532 ईस्वी (या 1497 ईस्वी) में एक ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था।
मान्यता के अनुसार तुलसीदास अपनी माता के गर्भ में 12 माह तक रहे। उनके जन्म के समय वे एक पांच वर्ष के बालक से सामान दिखाई देते थे। उनके मुँह में 32 दांत थे और जन्म लेते ही उन्होंने राम शब्द का उच्चारण किया इसीलिए उनका नाम रामबोला रखा गया। अशुभ नक्षत्र में जन्म लेने के कारण उनके जन्म से उनकी पिता की तुरंत मृत्यु का संयोग था , इसलिए उनके जन्म के चार दिन बार  ही उनके माता पिता ने उनका त्याग कर दिया। उनको उनकी माता हुलसी की नौकरानी चुनिया अपने साथ ले गयी। जब वो पांच वर्ष के थे तो चुनिया की मृत्यु हो गयी और तुलसीदास अनाथ हो गए। वो भीख मांग कर गुजारा करने लगे। कहा जाता है तब स्वयं माता पार्वती ने उनकी देखभाल की।

तुलसीदास की शिक्षा दीक्षा

6-7 वर्ष की आयु में रामबोला को गुरु नरहरिदास ने अपना लिया। रामबोला को गुरु नरहरिदास ने विरक्त दीक्षा देकर उसका नया नाम तुलसीदास रखा। 7 वर्ष की आयु में गुरु नरहरिदास ने अयोध्या में तुलसीदास का उपनयन संस्कार किया। इसके बाद तुलसीदास की शिक्षा आरम्भ हुई। नरहरिदास उनको वराह क्षेत्र , सोरों , जो कि वर्तमान कासगंज उत्तर प्रदेश में है , ले आये और उन्होंने तुलसीदास को कई बार रामायण सुनाई , जिसमें से कुछ ही तुलसीदास की समझ आयी। फिर तुलसीदास वाराणसी आ गए , जहाँ नरहरिदास के मित्र, गुरु शेष सनातन से उन्होंने संस्कृत , वेद , वेदांग और ज्योतिष की शिक्षा ली।

पत्नी से मिली राम भक्ति की प्रेरणा

तुलसीदास की पत्नी का नाम रत्नावली था, जिससे उनको तारक नामक पुत्र हुआ जिसकी मृत्यु बचपन में ही हो गयी।  एक बार रत्नावली अपने मायके गयी हुई थीं।  तुलसीदास अपनी पत्नी को बहुत प्यार करते थे। वे पत्नी से मिलने के लिए रात में तैरकर यमुना नदी पार कर के अपनी पत्नी के घर पहुंचे।  उनकी पत्नी पहली मंज़िल पर सो रहीं थीं।  वो अँधेरे में एक सांप को रस्सी समझ कर , उसे पकड़कर पहली मजिल पर पहुँच गए।  यह जान कर रत्नावली उन पर बहुत नाराज हुईं और उन्होंने तुलसीदास को कहा :

"हाड़ मांस की मैं  बनी , तामै ऐसी प्रीत।
ऐसी जो श्री राम में , होती ना भवभीत।"

इसका अर्थ है : मेरी देह हड्डियों और मांस की बनी हुई है , जिससे तुम इतना प्यार करते हो।  इतना प्यार  यदि तुम भगवान श्री राम से करते तो अवश्य ही इस भव सागर रुपी संसार से तुम्हारा भय ख़त्म हो जाता। तुलसीदास को पत्नी के ये वचन चुभ गए और उन्होंने गृहस्थ जीवन को त्याग कर भगवान राम की शरण में जाने का निश्चय किया।

शिव पार्वती के दर्शन एवं रामचरितमानस की रचना।

तुलसीदास ने वाराणसी में संस्कृत भाषा में रामायण लिखना आरम्भ किया। कहते हैं जो भी तुलसीदास दिन में लिखा करते थे , वह रात में अपने आप ही नष्ट हो जाता था।  ऐसा सात दिन तक होता रहा।  आंठवे दिन भगवान शंकर (शिव) और पार्वती ने उन्हें स्वपन में दर्शन दिए और उनसे संस्कृत के बजाए स्थानीय जनमानस की भाषा में लिखने के लिए कहा।  तुलसीदास जाग गए और उन्हें साक्षात् शिव और पार्वती के दर्शन हुए।  उन्होंने तुलसीदास को आशीर्वाद दिया और उन्हें अयोध्या जाकर अवधी भाषा में राम चरित्र (राम कथा) लिखने के लिए प्रेरित किया। 1575 ईस्वी में तुलसीदास ने राम नवमी के दिन अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना आरम्भ की और उन्होंने 1577 ईस्वी में विवाह पंचमी (जिस दिन राम और सीता का विवाह हुआ था) के दिन यह रचना पूर्ण की। इसके पश्चात् तुलसीदास वाराणसी आये और उन्होंने प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर में स्वरचित रामचरितमानस का गायन किया। उन्होंने रामचरित मानस मंदिर में ही रख दी। पुजारियों ने रामचरितमानस को सभी ग्रंथों में सबसे नीचे रख दिया।  सुबह जब मंदिर के द्वार खोले गए तो रामचरितमानस सब ग्रंथों में सबसे ऊपर रखी मिली तथा उस पर भगवान शिव के हस्ताक्षर "सत्यम् शिवम् सुंदरम्" लिखे हुए थे, जिनका अर्थ है , सत्य है , शाश्वत है , सुन्दर है।

कुछ ब्राह्मणों ने तुलसीदास की रामचरितमानस चुराने के लिए चोरो को उनके आश्रम पर भेजा। चोरों ने देखा को दो पुरुष , उनमें से एक शयाम वर्ण के थे और एक गोरे रंग के, हाथ में धनुष बाण लेकर तुलसीदास के घर की रक्षा कर रहे थे। चोर चोरी ना कर सके।  सुबह चोरों ने तुलसीदास से पूछा की उनके घर की रक्षा करने वाले वे रक्षक कौन थे तो तुलसीदास समझ गए की अवश्य ही चोरों को भगवान राम और लक्ष्मण के दर्शन हुए हैं।  तुलसीदास यह जान कर बहुत दुखी हुए की उनके घर की रक्षा स्वयं भगवान राम को करनी पड़ी।  उन्होंने रामचरित मानस को छोड़कर बाकी सब कुछ दान कर दिया।  इसका चोरों पर इतना असर हुआ कि उन्होंने चोरी करना छोड़ दिया और राम भक्त बन गए।

तुलसीदास को राम लक्ष्मण के दर्शन प्राप्त हुए 

वाराणसी में तुलसीदास रोज राम चरितमानस का गायन करने थे जिसे सुनने के लिए बहुत लोग आया करते थे।  तुलसीदास जिस वन में शौच के लिए जाया करते थे , वहां शौच से बचा हुआ जल एक पेड़ की जड़ो में दाल दिया करते थे। एक दिन उस पेड़ पर रहने वाला यक्ष उनके सामने प्रस्तुत हुआ और उसने कहा की आप जो जल रोज इस पेड़ की जड़ों में डालते हैं उससे मेरी प्यास बुझती है इसलिए आप कोई वर मांग लें।  तुलसीदास ने राम के दर्शनों की अभिलाषा प्रकट की तो यक्ष ने कहा की यह उसके बस में नहीं पर आपकी कथा सुनने रोज हनुमान जी आते हैं वो आपको अवश्य ही राम के दर्शन करा सकते हैं।  वे एक वृद्ध दीन हीन के रूप में आते हैं , सबसे पहले आते हैं और सबसे बाद में जाते हैं। यह जानकर तुलसीदास ने हनुमान जी को पहचानकर उनके पैर पकड़ लिए और राम दर्शन की इच्छा प्रकट की।  हनुमान जी ने उन्हें चित्रकूट जाने के लिए कहा।  चित्रकूट में कामदगिरि की परक्रमा करते हुए उनको राम लक्ष्मण के दर्शन हुए पर तुलसीदास उन्हें पहचान न पाए और जब हनुमान जी ने बताया की वे ही राम लक्ष्मण थे तो तुलसीदास बहुत पछताए और हनुमान जी से एक बार और दर्शन की इच्छा प्रकट की। अगले दिन सुबह जब तुलसीदास चन्दन घिस रहे थे तब भगवान राम ने तुलसीदास से बालक रूप में आकर चन्दन माँगा। तुलसीदास इस बार भी पहचान न सके। यह देख हनुमान जी ने तोते के रूप में घोषणा कर दी :

चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर

तुलसीदास चन्दन घिसें , तिलक देत रघुबीर।। 

हनुमान जी की घोषणा सुनते ही तुलसीदास समझ गए की चन्दन मांगने वाला बालक राम ही है और इस प्रकार तुलसीदास को राम के दर्शन प्राप्त हुए। इस कथा को विस्तार से जानने के लिए पढ़ें : तुलसीदास जी का श्री राम से मिलन (When Tulsidasa Met Lord Shree Ram)

तुलसीदास  के  चमत्कार

एक बार एक स्त्री के पति की मृत्यु हो गयी।  तुलसीदास जो को इसका पता नहीं था और उन्होंने अज्ञानता वश उस स्त्री तो सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे दिया। जब उस स्त्री ने तुलसीदास जी को बताया की उनका आशीर्वाद पूरा नहीं हो सकता क्योंकि उसके पति की मृत्यु अभी अभी हुई है , तब अपने आशीर्वाद का मान रखने के लिए , तुलसीदास ने उस व्यक्ति को जीवन दान दिया।

एक दूसरे चमत्कार में तुलसीदास एक  बार वृन्दावन गए और वहाँ वो एक कृष्ण मंदिर में पूजा करने गए। पढ़ें : भगवान श्री कृष्ण (Lord Shri Krishna)  वहां के पुजारी और लोगों ने उनसे उपहास करने के लिए कहा कि पूजा का फल तभी मिलता है जब सिर अपने इष्ट देवता के सामने झुकाया जाये, आपके इष्ट देव तो राम हैं और यह मंदिर तो कृष्ण का है। तब तुलसीदास ने भगवान की मूर्ति से कहा कि :


काह कहौं छबि आजुकि भले बने हो नाथ ।
तुलसी मस्तक तब नवै धरो धनुष शर हाथ ॥


इसका अर्थ है , भगवन आपकी छवि का वर्णन मैं क्या करूँ , क्योंकि आप बहुत अनुपम दिखाई देते हैं।  (पर) तुलसीदास सिर तभी झुकायेगा जब आप हाथ में धनुष बाण धारण करेंगे , अर्थात जब आप राम रूप में प्रकट होंगे और देखते ही देखते वह कृष्ण मूर्ति , राम मूर्ति में बदल गयी। पढ़ें : हिंदी कहानी - मूर्ति में भगवान दिखाई देना (Hindi Story - To see God in statue)

तुलसीदास की अकबर  से मुलाकात और राम हनुमान चालीसा की रचना

तुलसीदास के इन चमत्कारों की चर्चा अकबर के दरबार में भी जा पहुंची। उसने तुलसीदास को फतेहपुर सीकरी दरबार में बुला भेजा और उनसे चमत्कार दिखाने के लिए कहा।  तुलसीदास ने कहा की वे कोई चमत्कार करना नहीं जानते , वे तो केवल राम को जानते हैं।  अकबर उनके इस उत्तर से नाराज हो गया और उसने उनको कारावास में कैद कर लिया। कारावास में रहकर तुलसीदास ने हनुमान जी की भक्ति में हनुमान चालीसा की रचना की और चालीस दिन तक उसका पाठ किया।  तब ना जाने कहाँ से बहुत सारे बंदरों ने अकबर के किले पर और शहर पर आक्रमण कर दिया।  अकबर की शक्तिशाली सेना भी उस आक्रमण को झेल ना सकी। तब अकबर के सलाहकारों ने अकबर को समझाया की हो न हो यह चमत्कार कैदखाने में कैद उस हिन्दू फ़क़ीर का ही है।  अकबर को बात समझ में आ गयी।  उसने तुलसीदास से क्षमा मांगी और उनको आज़ाद कर दिया।  तब बंदरों का आक्रमण अपने आप ही बंद हो गया।  तुलसीदास ने अकबर को उसकी राजधानी फतेहपुर सीकरी से दूर ले जाने के लिए कहा।  तब अकबर ने अपनी राजधानी दिल्ली में स्थानांतरित कर ली।

तुलसीदास की रचनाएं :

तुलसीदास की कुछ मुख्य रचनाएं इस प्रकार हैं :

1. रामचरितमानस : अवधी भाषा में राम का जीवन चरित्र।
2. दोहावली : 573 दोहों का संकलन, अधिकांशतः ब्रज भाषा में।
3. साहित्य रत्न या रत्न रामायण : ब्रिज भाषा में लिखी कविताओं में रामायण का प्रतिपादन।
4. गीतावली : ब्रज भाषा लिखे गीतों में रामायण का प्रतिपादन।
5. कृष्ण गीतावली या कृष्णावली : कृष्ण भगवन को समर्पित ब्रज भाषा में 61 गीतों का संकलन।
6. विनय पत्रिका : राम से भक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करते हुए 279 छंद।

तुलसीदास की कुछ छोटी रचनाएं इस प्रकार हैं :

1. बरवै रामायण : अवधी भाषा में रामायण का संक्षिप्त रूप।
2. पार्वती मंगल : अवधि भाषा में 164 छंदों में पार्वती जी की शादी का वर्णन।
3. जानकी मंगल : अवधि भाषा में 216 छंदों में सीता जी की शादी का वर्णन।
4. रामलला नहछू : राम के नहछू संस्कार (उपनयन संस्कार से पहले पेअर के नाखून काटना) के बारे में अवधी में २० छंद।
5. रामाज्ञा प्रश्न : शाब्दिक रूप से राम की इच्छा का उद्धरण करते हुए 343 दोहे।
6. वैराग्य सांदीपनि : ब्रज भाषा में वैराग्य की महिमा का बखान करते हुए 60 छंद।

तुलसीदास की कुछ और रचनाएं इस प्रकार हैं :

1. हनुमान चालीसा : हनुमान जी के सम्मान में अवधी भाषा में ४० चोपाई और २ दोहे।
2. संकटमोचन हनुमानाष्टक : हनुमान जी के लिए अवधी भाषा में 8 छंद।
3. हनुमान बाहुक : 1607 ईस्वी में तुलसीदास जो को पूरे शरीर में विशेषकर हाथ में बहुत दर्द हुआ। तब उन्होंने हनुमान बाहुक नामक कृति की रचना की। जिसमे ब्रज भाषा में 44 छंद हैं।  उसमें उन्होंने अपने दर्द का वर्णन किया। इस रचना से उनका दर्द काम हो गया।
4. तुलसी सतसई : भिन्न क्रम में दोहावली और रामाज्ञा प्रश्न के 747 दोहे।

मृत्यु

विनयपत्रिका तुलसीदास की आखिरी रचना थी जिसको तुलसीदास  ने तब लिखा जब कलि युग उनको परेशान करने लगा। 279 छंदों में तुलसीदास ने राम से प्रार्थना की कि राम उनको भक्ति प्रदान करें और अपनी शरण में ले लें। तुलसीदास के अनुसार भगवान राम ने स्वयं विनयपत्रिका पर हस्ताक्षर किये।

तुलसीदास की मृत्यु वाराणसी  गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट पर हुई।


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