बच्चों के लिए एक व्यंगात्मक और शिक्षाप्रद कहानी (Funny and Moral Hindi Story for Kids)
Moral of the Story for Kids : 1. जैसे को तैसा। 2. सेर को सवासेर मिल ही जाता है। 3. स्याना कौवा हमेशा गोबर में ही मुँह मारता है।
Hindi Moral Story - दस हजार का कच्छा
अगले दिन नियत समय पर युवक उस दुकान पर पहुँच गया। आज कुछ अधिक ही ग्राहक दुकान पर मौजूद थे। जिसमें से कुछ तो वास्तविक ग्राहक थे और कुछ कल वाले ही थे जो केवळ यह देखने आये थे कि युवक का 'वो' से क्या मतलब है। उधर दुकानदार भी पहले से तैयार था। वो सोच रहा था कि अवश्य ही युवक कोई ऐसा कपडा मांग रहा है जो उसकी दुकान में नहीं है। ग्राहक का खाली हाथ लौटना उसको बिल्कुल पसंद न था। इसीलिए वो आज कई और तरह के वस्त्र भी दुकान पर लाया था। महिलाओँ और बच्चों के भी नए प्रकार वस्त्र वो दुकान पर लाया था। क्या पता युवक अपने लिए नहीं , बल्कि अपनी पत्नी या बच्चों के लिए वस्त्र ढूंढ रहा हो। बस फिर क्या था , एक बार फिर से युवक और दुकानदार के बीच 'वो वो ' का क्रम चल पड़ा। युवक को तो कुछ खरीदना था नहीं , इसीलिए वो दुकानदार की दिखाई हर चीज को अस्वीकृत करके 'वो' दिखाने की मांग रख देता था। ऐसा करते हुए युवक मन ही मन आनंदित होता था। लोग भी कल की ही भांति 'वो' का मतलब जानने के लिए बहुत उत्सुक थे और जिज्ञासा वश दुकानदार के प्रयत्न को देख रहे थे।
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आख़िरकार काफी मेहनत के बाद दुकानदार थक गया और वो समझ गया कि युवक को कुछ नहीं चाहिए और युवक केवल उसको परेशान कर रहा है। परन्तु उसने अपने चेहरे पर ऐसा कोई भाव नहीं आने दिया जिससे युवक को आशंका हो कि दुकानदार युवक की शरारत समझ गया है। तब दुकानदार ने युवक को बोला , "बस श्रीमान , मैं समझ गया आपको कैसा कपडा चाहिए। आप अवश्य ही एक ऐसा अनोखा कपड़ा ढूंढ रहे हैं , जो आज तक किसी ने देखा ही ना हो। आप मुझे कल तक का समय दें तो मैं आपको ऐसा कपड़ा लाकर अवश्य दे सकता हूँ , जिसे आज तक किसी ने ना देखा हो। परन्तु मेरी एक शर्त है। ऐसा कपडा ढूंढ़ने के लिए मुझे काफी श्रम करना पड़ेगा और मेरा काफी पैसा भी खर्च हो जायेगा। इसलिए 'वो' कपडा थोड़ा ज्यादा ही महंगा होगा। यदि आपकी खरीदने की मंशा और औकात हो , तभी मैं लाऊं ?" ऐसा कहकर दुकानदार ने चुपचाप से गेंद युवक के पाले में डाल दी और स्वयं मन ही मन मुस्कुराने लगा। दुकानदार की बात सुनकर , सब लोग युवक की ओर देखने लगे , कि युवक अब क्या उत्तर देगा। युवक सोच रहा था कि शायद उसकी ' वो ' की मांग सुनकर दुकानदार का मानसिक संतुलन बिगड़ चुका है इसीलिए उसने 'वो' कपडा लाकर देने की बात कही है जो आजतक किसी ने नहीं देखा। " युवक बोला , "हाँ हाँ , वो ही कपड़ा जो आजतक किसी ने ना देखा हो। आप बिल्कुल चिंता न कीजिये , मैं 'वो' जरूर खरीदूंगा , चाहें कितना भी महंगा क्यों ना हो। मैं कल इसी समय आऊंगा , आप मंगा कर अवश्य रखना " यह कहकर युवक चला गया। आज युवक और दुकानदार दोनों मन ही मन प्रसन्न थे।
अगले दिन नियत समय पर युवक दुकान पर आ गया। आज दुकान पर पहले से भी अधिक लोग मौजूद थे , तमाशबीन ज्यादा और ग्राहक कम। युवक को आया देख तमाशबीनों ने रास्ता छोड़ दिया और जो वास्तविक ग्राहक , युवक और दुकानदार के बीच अड़े थे उनको भी तमाशबीनों ने बीच में से एक तरफ खींच लिए। युवक को आया देख दुकानदार बहुत प्रसन्न हुआ और बोला , "आइए आइए , मैं आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था। बस कुछ क्षण का समय दीजिये , मैं अभी वो लेकर आता हूँ।" कहकर दुकादर दुकान के भीतर गया और जब लौटा तो उसके दोनों हाथ इस मुद्रा में थे जैसे कि उसने दोनों हाथों से कोई कपड़ा पकड़ रखा हो। परन्तु कपड़ा तो कोई दिखाई नहीं दे रहा था। सभी आँखे फाड़ फाड़ कर देख रहे थे। दुकानदार बोला , "श्रीमान जी , ये लीजिये आपका 'वो' , ये अनोखा कच्छा आज तक किसी ने नहीं देखा। मेरे बाद इसको देखने वाले आप दूसरे हैं। यह इतना आरामदायक है कि इसको पहन कर आपको एकदम खुला खुला लगेगा , यह बहुत हवादार भी है , इसमें आप बहुत हल्का महसूस करेंगे। बस इसकी कीमत थोड़ी ज्यादा है , मात्र दस हजार रुपये। पर यकीन मानिये , यह आप पर बहुत जंचेगा। बल्कि यूँ जानिए कि यह पहन कर आपको कुछ और पहनने की जरूरत ही नहीं होगी , आपको देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो जाएगी। मूत्र और शौच के लिए भी आपको इसको उतारने की जरुरत नहीं पड़ेगी। " दुकानदार की बातें सुनकर सभी उस अनोखे , गुणों की खान , ना दिखाई देने वाले कच्छे को आंखें फाड़ फाड़ कर देखने लगे।
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युवक को भी वह दस हजार का कच्छा बहुत अच्छा लगा , इतनी सारी विशेषताएं जो थीं उस न दिखाई देने वाले कच्छे में। और फिर उसने कल 'वो' (कपडा जो न दिखाई दे) खरीदने की हामी भी तो भरी थी, सबके सामने। उसे लगा की यदि वो 'वो' कच्छा नहीं खरीदेगा तो लोगों के सामने बहुत बेज्जती होगी। उसने तुरंत ही जेब से दस हजार रूपए निकाल कर दुकानदार के हाथ में दस हजार रूपए रखे और कच्छे को अच्छे से पैक करके देने के लिए कहा। दुकानदार ने दस हजार रूपए लपकते हुए कहा , अरे श्रीमान यह आप क्या कर रहे हैं ? इतने महंगे कपड़े को पैक करवा रहे हैं। इसे तो आपको तुरंत पहनकर दुनिया को दिखाना चाहिए। इसमें आपका व्यक्तित्व बहुत निखर जायेगा। इतना महंगा कच्छा सारे शहर में किसी के पास नहीं होगा। लोग जब आपको इसको पहने देखेंगे तो आपसे जलेंगे।" युवक को दुकानदार की बात अच्छी लगी। युवक ने दुकानदार के हाथों से बड़ी सावधानी से वह कच्छा पकड़ लिए और पूछा , "कपडे बदलने का कमरा कहाँ है ?" दुकानदार ने एक कमरे की ओर इशारा कर दिया। युवक उस कमरे में गया और अपने कपड़े उतारकर , बस वह कच्छा पहनकर आ गया। जब वो दस हजार रूपए का ना दिखाई देने वाला कच्छा पहनकर निकला तो उसने देखा कि दुकान के बाहर उसका कच्छा देखने वालों की भीड़ बढ़ गयी थी। सब उसके कच्छे की ओर ही देख रहे थे और मुस्कुरा रहे थे। बच्चे तो चिल्ला चिल्ला कर तालियां भी बजा रहे थे। अपने कच्छे की इतनी प्रसिद्धि देखकर उसको बड़ा अच्छा लगा। वो घूम घूम कर लोगों को अपना कच्छा सभी ओर से दिखा रहा था और कहता जा रहा था , "देखो देखो , कैसा लग रहा हूँ ? दस हजार का कच्छा है। बहुत ही आरामदायक है , ऐसे लगता है जैसे कुछ पहना ही ना हो। " तभी उसे याद आया कि उसे अपनी पत्नी को लाने के लिए ससुराल जाना था। यह विचार आते ही उसने दुकानदार को कच्छे के लिए ह्रदय से धन्यवाद दिया और निकल पड़ा ससुराल की ओर। वो जहाँ से भी निकलता , लोग उसके कच्छे को घूर घूर कर देखते और आपस में बातें करते। यहाँ तक की कुत्ते भी उसके कच्छे को देखकर उसके ऊपर भौंक रहे थे। उसे बड़ा अच्छा लग रहा था। उसके दस हजार के कच्छे ने उसे एक विशिष्ठ व्यक्ति बना दिया था।
युवक ने ससुराल पहुंचकर दरवाजे पर दस्तक दी। सासु जी ने दरवाजा खोला। दामाद जी को आया देख उनको प्रसन्नता हुई। पर उनकी यह प्रसन्नता क्षणिक ही थी। दामाद जी के वस्त्रों को नदारद पाकर , वो सन्न रह गयीं। उन्हें पता ही नहीं चला कि दामाद जी ने कब उन्हें प्रणाम किया। वो जवाब देना भूल गयीं। सासु जी की ऐसी हालत देखकर , दामाद जी ने हँसते हुए कहा , "देखिये , देखिये , सासु माँ आप भी देखिये , दस हजार का है ये मेरा नया कच्छा , एकदम खुला खुला, हल्का और हवादार। " यह कहकर युवक घूम घूम कर अपनी सास तो अपना १० हजार रूपये का कच्छा दिखाने लगा। सासु जी अपने दामाद की ऐसी हरकतें देखकर अवाक् रह गयीं। वो समझ नहीं पा रहीं थीं कि वो इस अजीब परिस्तिथि में कैसा बर्ताव करें। तभी उनके पति के 'कौन आया है ' के स्वर उनके कानों में पड़े और वो दरवाजे से एक तरफ हट गयीं , जिससे कि दामाद जी अंदर आ सकें और ससुर जी से मिल सकें। ससुरजी की आवाज सुनकर युवक अंदर की ओर लपका और उसने ससुर जी को प्रणाम किया। दामाद की स्तिथि देखकर ससुर जी की हालत भी वैसी ही हो गयी जो थोड़ी देर पहले सासु जी की थी। जीजाजी की आवाज सुनकर , साले सालियाँ भी दौड़े चले आये , लेकिन जीजाजी को देखकर उनके पैर भी दूर ही ठिठक गया। युवक बोला , "अरे , आओ आओ , वहीं क्यों रुक गए , पास से देखो , दस हजार का कच्छा है , एकदम खुला , हवादार और आरामदायक। " यह कहकर युवक अपने ससुर जी और साले सालियों को घूम घूम कर अपना कच्छा दिखाने लगा। ससुर जी ने आखों के इशारों से ही बच्चों को जीजाजी पर हंसने से रोक दिया था। समझ में तो उनको भी कुछ नहीं आया , पर वो दामाद जी को रुष्ट नहीं करना चाहते थे , इसीलिए वो अपनी पत्नी सहित , दामाद जी की सेवा में लग गए। वो सोच रहे थे कि वैसे तो महीना नवम्बर का चल रहा था पर शायद उनके दामाद जी को गर्मी ज्यादा लग रही हो। वो चाहते थे कि उनकी बेटी जो अपनी सहेली के घर से अगली सुबह आने वाली थी , आ जाये , और वो शांति से अपनी बेटी को दामाद जी दे साथ विदा कर दें। फिर बेटी जाने और दामाद जी जानें। यही सोचकर दामाद जी की अवस्था तो नजरअंदाज किया गया और सारा घर उनकी सेवा में लग गया।
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रात हुई तो सोने के लिए , सासु जी ने दामाद जी की खाट (चारपाई) , ससुर जी के कमरे में डाल दी , नवम्बर का महीना चल रहा था। दिन में तो मौसम ठीक था पर रात में कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी , इसलिए रजाई भी रख दी। घर के अंदर बिस्तर लगा देख युवक बिगड़ गया। वो तो अपना दस हजार का कच्छा सबको दिखाना चाहता था। उसने अपनी खाट घर से बाहर बिछाने को कहा। सुनकर सासु जी जो गुस्सा तो बहुत आया , पर जब उन्होंने ससुर जी की और देखा , जो आँखों के इशारों से कह रहे थे कि , जैसा यह कह रहा है वैसा ही करो , तो उन्होंने युवक की खाट घर के बाहर बिछा दी। युवक को तो सबको अपना कच्छा दिखाने का शौक था , इसलिए उसने रजाई ना ओढ़ कर सोने का निर्णय लिया और रजाई भी हटवा दी। सासु जी चुपचाप रजाई भी अंदर ले गयीं। उन्होंने बच्चों को कह दिया कि , जीजाजी का ध्यान रखना , अगर वो किसी चीज के लिए आवाज लगाएं तो तुरंत लाकर देना।
दामाद जी को आया देखकर और घर के बाहर सोता देख गाँव के कुछ लोग भी बातचीत करने के लिए इकट्ठे हो गए। युवक तो इसी मौके के लिए बाहर सोया था । लोगों को आया देखकर वह बहुत खुश हुआ। उसने सबको अपने दस हजार के कच्छे के बारे में विस्तार से बतलाया। सब उसका दस हजार का कच्छा देखकर बहुत मुस्कुरा रहे थे और उसके विषय में ही फुसफुसाकर बातें कर रहे थे। धीरे धीरे सब अपने घर चले गए। युवक भी सोने की कोशिश करने लगा। ठण्ड बहुत ज्यादा थी। कमरे के अंदर भी रजाई के लायक ठण्ड थी , और वो तो बाहर खुले में सो रहा था। आखिरकार जब ठण्ड सहन नहीं हुई तो उसने अपने साले सालियों को आवाज लगायी। जीजाजी की आवाज सुनकर साले सालियाँ भागे चले आये। युवक ने साले सालियों को आया जानकर , आधी नींद में ही उनसे रजाई लाने के लिए कहा। साले सालियाँ भागकर रजाई लाने के लिए घर के अंदर गए। वहां उन्होंने सोचा की शायद उन्होंने गलत सुन लिया है। जीजाजी को तो आज दिन में इतनी गर्मी लग रही थी कि उन्होंने कपड़े भी नहीं पहने थे , फिर वो रजाई क्यों मागेंगे , अवश्य ही वो ठन्डे पानी से नहाना चाहते होंगे और बाल्टी भरकर ठंडा पानी मांग रहे होंगे। यही सोचकर वो सभी एक एक ठन्डे पानी की बाल्टी भरकर जीजाजी के पास पहुंचे और बोले , "ये लो जीजाजी , हम ले आये हैं। " युवक को बहुत ठण्ड लग रही थी। ठण्ड के मारे उसका बुरा हाल था। उसने बिना देखे ही कह दिया , "ले आए , डाल दो जल्दी से मेरे ऊपर। " सबने ठन्डे पानी की बाल्टियां युवक के ऊपर पलट दीं। "मार दिया रे , मार दिया रे" कहकर वो चिल्लाया और एकदम से खाट से उठा। लेकिन यह क्या , वह तो खाट से उठ ही नहीं पाया। ठन्डे पानी के कारण उसका शरीर अकड़ गया था। युवक की चिल्लाने की आवाज सुनकर सास , ससुर और गाँव वाले भागे चले आये। दामाद जी को ठन्डे पानी से अकड़ा देखकर सभी घबरा गए और जल्दी से उसको को घर के अंदर ले गए और अंगीठी जलाकर उसकी सिकाई करी। सिकाई से गर्मी मिलने के बाद उसके के हाथ पैर थोड़े खुले , तभी सिकाई करते करते साले सालियों का हाथ लगने से अंगीठी से एक जलता हुआ कोयला युवक के दस हजार के कच्छे पर गिर गया। उसे बहुत तेज जलन हुई। उस जलन को तो वह सह गया पर उसे अपने १० हजार के कच्छे के जलने से उसे बहुत गुस्सा आ गया। उसने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया , "मूर्खो तुमने मेरा १० हजार का कच्छा जला दिया। .. .... मूर्खो तुमने मेरा १० हजार का कच्छा जला दिया। .. .... "
तभी उस युवक के माँ ने उसके गाल पर एक थप्पड़ मारा और बोली , "निकम्मे सूरज सिर पर चढ़ आया है , बहू को लेने उसके ससुराल नहीं जायेगा क्या। हमेशा पड़ा पड़ा सोता रहता है। और ये सपने में क्या कच्छा , कच्छा बोल रहा था। छी , तुझे सपने में भी कच्छे नजर आते हैं। उठ खड़ा हो। " थप्पड़ और डांट खाकर उसकी नींद टूटी और अपने आप को सुरक्षित अपने घर में पूरे कपड़ों में पाकर , उसने सोचा कि शुक्र है ये सपना ही था। सपने में ऐसी दुर्गति होने पश्चात् उस युवक ने कसम खाई कि वो अब किसी से कोई शरारत नहीं करेगा क्योंकि वो समझ गया था कि हमेशा स्याना कौवा ही गोबर में मुँह मारता है। उसने दुकानदार से स्याना बनने की कोशिश की और दुकानदार ने उसे गोबर का स्वाद चखा दिया।
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