हिंदी भाषा (Hindi Language)

मित्रो , हिंदी भारत में बोली जाने वाली सबसे प्रमुख भारतीय भाषा है।  आइये थोड़ा इसके बारे में जानते है। 

हिंदी भाषा (Hindi Language)

हिंदी का उद्गम 

हिंदी की उत्पत्ति ठीक प्रकार से ज्ञात नहीं है।  जो लोग हिंदी को कुछ शताब्दियों पुराना ही मानते हैं , वे सही नहीं हैं।  हिंदी अपने स्थानीय रूपों में बहुत पहले से ही भारत में उपस्थित थी। आधुनिक हिंदी इन्हीं स्थानीय हिंदी भाषाओँ  के मिश्रण का परिष्कृत और औपचारिक रूप मात्र है। 

हिंदी का नामकरण 

हिंदी का नामकरण अरब के रहने वाले लोगों द्वारा किया गया है जो कि भारतीय उपमहाद्वीप को 'हिन्द' , इसमें रहने वाले लोगों को 'हिन्दू' और यहाँ की भाषा को 'हिंदी' कहा करते थे। 

हिंदी का प्रभुत्व 

भारत में हिंदी का प्रभाव क्षेत्र बहुत बड़ा है। उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में हिंदी प्रमुख भाषा के रूप में बोली जाती है। इसके अतिरिक्त पश्चिमी भारत में हर प्रान्त की अपनी भाषा होते हुए भी हिंदी एक प्रमुख भाषा है। पूर्व में हिंदी असम , त्रिपुरा आदि राज्यों तक आसानी से बोली और समझी जाती है। दक्षिण भारत में हिंदी की पकड़ कमजोर है पर वहाँ भी हिंदी ने पैठ बनाई है। हैदराबाद और बैंगलोर जैसे शहरों में , जहाँ उत्तर भारतीय जन संख्या काफी है , हिंदी आसानी से समझी जाती है। 

हिंदी , भारत के अतिरिक्त हिंदी , नेपाल , मारीशस , फीजी , सूरीनाम , गुयाना , त्रिनिडाड, टोबैगो और साउथ अफ्रीका में भी बोली जाती है। इसके अतिरिक्त अपनी बहन उर्दू के रूप में हिंदी अधिकांश पाकिस्तान में भी समझी जाती है।

हिंदी की विशेषताएं 

  • हिंदी ऊपर नीचे और बायें से दायें लिखी जाती है। 

  • हिंदी भाषा जैसी लिखी जाती है , वैसी ही बोली जाती है, यानि कि अंग्रेजी की तरह नहीं , जिसमें GO गो होता है और TO टू होता है।

  • हिंदी में कोई छुपा हुआ (Silent) अक्षर नहीं होता : जैसे अंग्रेजी में Honest को 'हौनेस्ट' न बोलकर 'औनेस्ट' बोला जाता है क्योंकि इसमें 'H' अक्षर छुपा हुआ (Silent)  होता है , इस प्रकार छुपा हुआ (Silent) अक्षर हिंदी में नहीं होता। 

  • इसीलिए जब कोई भारतीय अंग्रेजी बोलता है तो , हिंदी में पालन पोषण होने के कारण उसका उच्चारण का तरीका हिंदी जैसा ही रहता है। वो अंग्रेजी को वैसे ही बोलता है जैसे अंग्रेजी लिखी होती है और बोलने समय छुपे अक्षरों (Silent Letters) का भी बिल्कुल ध्यान नहीं रखता। यही कारण है की पश्चिमी जगत के लोग भारतीयों के अंग्रेजी बोलने के तरीके को Thick Accent कहते हैं। 

  • हिंदी में कोई संक्षिप्त रूप (Short Form) नहीं होता : जैसे अंग्रेजी में 'कौन बनेगा करोड़पति' को KBC और 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे' को DDLJ कहा जाता है , उसी प्रकार हिंदी में 'कौन बनेगा करोड़पति' को 'कौ ब क' और 'दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे' को 'दि दु ले जा' नहीं कहा जाता है। 

  • आश्चर्यजनक रूप से , हिंदी के बहुत सारे विराम चिन्ह बिलकुल अंग्रेजी जैसे ही होते हैं , जैसे कि अर्ध विराम (Semicolon) , अल्प विराम (Coma) इत्यादि।  यहाँ तक कि प्रश्नचिन्ह (Question Mark) और विस्मयादिबोधक चिह्न (Exclamation Mark) भी। अब यहाँ यह बताना मुश्किल है कि यह हिंदी पर अंग्रेजी का प्रभाव है या , अंग्रेजी पर हिंदी का। 

  • हिंदी में भी अंग्रेजी की ही भांति स्वर (Vowels) और व्यंजन (Consonant) होते है , जहाँ व्यंजन एक अक्षर होता है , वहीँ स्वर अक्षर होने के साथ साथ एक मात्रा के तौर पर भी प्रयुक्त होता है और व्यंजनों को अलग अलग प्रकार से बोलने में सहायता करता है। (और पढ़ें : हिंदी वर्णमाला (Hindi Alphabets))

  • वर्णमाला में हिंदी के अक्षर जीभ , तलुए  और होंठो की गति के अनुसार क्रम में होते हैं : जी हाँ , जहाँ अंग्रेजी के अक्षर वर्णमाला में बेतरतीब तरीके से किसी भी क्रम में नहीं होते और कोई नहीं जानता कि A के बाद B क्यों आता है , वहीं दूसरी और हिंदी के अक्षर एक क्रम में आयोजित होते हैं।  यह क्रम अक्षर को बोलने में हमारी जीभ , तलुए और होंठो की गति के अनुसार होता है। यदि आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि क , ख , ग , घ बोलने में हमारी जीभ , तलुए  और होंठो की गति लगभग एक ही प्रकार से होती है और इसी प्रकार च , छ , ज , झ बोलने में बोलने हमारी जीभ , तलुए  और होंठो की गति समान प्रकार से होती है। 

  • हिंदी में स्त्री लिंग और पुर्लिंग की क्रिया (Verb), अलग अलग प्रकार से बोली जाती है।  जैसे कि "लड़का खेलता है" बोला जाता है और "लड़की खेलती है" बोला जाता है। इसी प्रकार नपुंसकलिंग की वस्तुओं को भी स्त्रीलिंग और पुर्लिंग के आधार पर ही बोला जाता है। जैसे "बस आ गयी" और "रिक्शा आ गया " । यह अनूठी विशेषता किसी भी विदेशी भाषा में नहीं पायी जाती। अधिकतर पुर्लिंग बोध के लिए 'आ' की मात्रा का और स्त्रीलिंग बोध के लिए 'बड़ी ई' की मात्रा का प्रयोग होता है। 

  • पुरुष प्रधान समाज होने के कारण जहाँ पुर्लिंग और स्त्रीलिंग को एक साथ इंगित करना हो वहां पुर्लिंग शब्दों का ही प्रयोग होता है। जैसे कि यदि किसी समारोह में 500 स्त्री और पुरुष उपस्थित हैं तो कहा जायेगा कि 'समारोह में 500 आदमी आए हैं' न कि 'समारोह में 500 औरतें आई हैं'।

  • एक और बहुत ही रोचक बात यह है की अंग्रेजी के Articles (a , an , the) समझने और बच्चों को समझाने में हिंदी , अंग्रेजी से अच्छी साबित होती है। जैसे कि अंग्रेजी में जो शब्द vovels से , यानि कि a ,e ,i ,o ,u से शुरू होते हैं उनसे पहले a न लिखकर an लिखा जाता है। यह परिभाषा तब फेल हो जाती है , जब बच्चे के सामने User, Europion और Eucalyptus जैसे शब्द आते है और वो समझ नहीं पाता कि इनसे पहले an क्यों नहीं लगता।  तब आप बच्चे को हिंदी की सहायता से आसानी से समझा सकते हैं अंग्रेजी के  a ,e ,i ,o ,u से शुरू होने वाले शब्द यदि हिंदी के स्वरों की ध्वनि यानि कि अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ओ , औ कि ध्वनि से शुरू हों तभी an का प्रयोग होता है और User, Europion और Eucalyptus यू  के ध्वनि से शुरू होते हैं इसीलिए इनसे पहले an का प्रयोग नहीं होता। 

हिंदी और संस्कृत  में समानता एवं भिन्नता 

हिंदी की वर्णमाला पूरी तरह संस्कृत से ली गयी है और इसकी शब्दावली में भी अधिकांश शब्द संस्कृत भाषा से लिए गए हैं । वर्णमाला और शब्दावली की समानता होते हुए भी हिंदी की व्याकरण संस्कृत से पूरी तरह भिन्न है। हिंदी में कोई शब्दरूप या धातुरूप नहीं होता। हिंदी में संस्कृत की तरह हलन्त या विसर्ग भी नहीं होते।

हिंदी और उर्दू में समानता एवं भिन्नता 

जब भारत पर मुस्लिम राजाओ ने राज किया तो वो अपने साथ फारसी भाषा को लाये , इसीलिए फारसी उस समय राजदरबारों की भाषा बन गयी , लेकिन स्थानीय जनमानस तब भी स्थानीय हिंदी ही बोलता था। दो अति विकसित भाषाओँ के मिश्रण से एक ऐसी भाषा ने जन्म लिया जिसकी व्याकरण तो हिंदी की ही थी पर शब्दावली में स्थानीय हिंदी, संस्कृत और फारसी का मिश्रण था। यह नई भाषा , देवनागरी और फारसी दोनों लिपियों में लिखी जा सकती थी। इसको हिंदुस्तानी कहा जाने लगा। कालान्तर में हिन्दुओं ने इस हिंदुस्तानी भाषा के उस रूप में अपनाया जिसकी लिपि हिंदी की देवनागरी लिपि थी और जिसमें स्थानीय हिंदी और संस्कृत के शब्द अधिक थे। इस भाषा को हिंदी कहा गया। वहीं दूसरी ओर मुसलमानों ने फारसी लिपि पर आधारित हिंदुस्तानी को अपनाया जिसमें फारसी के शब्द अधिक थे। इसे उर्दू कहा गया। इसीलिए हिंदी और उर्दू बोलने में एक जैसी हैं और लिखने में बहुत अलग अलग हैं। और पढ़ें : फारसी एवं अन्य भाषाओं के शब्द जो हम हिंदी में प्रयोग करते हैं। (Persian and Other Language Words Which We Use in Hindi)

हिंदी पर अंग्रेजी का प्रभाव 

संस्कृत और फारसी के बाद यदि किसी भाषा ने हिंदी पर अपना प्रभाव डाला है तो वह है अंग्रेजी। आज की हिंदी में अंग्रेजी शब्दों की भरमार है। 

भारत पर अंग्रेजों के 190 साल के राज के कारण आज कृपया, क्षमा कीजिये और धन्यवाद की बजाय , प्लीज (Please), सॉरी (Sorry) और थैंक्यू (Thank You) जैसे अंग्रेजी के शब्द अधिक प्रयोग होते हैं। वास्तव में अंग्रेजों को भारत में अपना राज और व्यापार करने के लिए ऐसे कर्मचारियों की आवश्यकता थी जो अंग्रेजी जानते हों , इसलिए उन्होंने हम पर अंग्रेजी का जुआ लाद दिया , जिसे हम आज तक उतार नहीं पाए हैं। इसीलिए आज की हमारी शिक्षा पद्यति में अंग्रेजी का इतना महत्त्व है कि बच्चों को हिंदी में  आधुनिक गिनती भी नहीं आती।  और तो और लोगों को यह भी नहीं पता कि जिस गिनती को वे अंग्रेजी में पढ़ते हैं उस गिनती का जन्म दाता देश भारत ही है। 

आधुनिक विज्ञान की अधिकतर शब्दावली भी अंग्रेजी में ही है , इसीलिए आधुनिक हिंदी में कई वैज्ञानिक शब्द सीधे तौर पर प्रवेश कर गए हैं , जैसे कंप्यूटर , लैपटॉप इत्यादि। (और पढ़ें : 100 तक हिंदी की गिनती (Hindi Counting Up To 100))

और विश्व में पाश्चात्य जगत के प्रभुत्व के कारण भी आधुनिक हिंदी में अंग्रेजी के बहुत सारे शब्द प्रवेश कर गए हैं। यह प्रभाव इतना गहरा है कि एक नई भाषा हिंगलिश (Hinglish) ने जन्म ले लिया है। इसमें हिंदी का वाक्य को अंग्रेजी लिपि में लिखा जाता है। इसका प्रयोग व्हाट्स ऍप (Whats App), फेसबुक (Facebook) जैसे सोशल नेटवर्किंग (Social Networking) मंचों पर बहुत होता है। 

व्यावहारिक हिंदी

मित्रों , किसी भी अन्य भाषा की तरह ही, पढाई जाने वाली हिंदी और व्यावहारिक हिंदी में अंतर होता है। जैसे यदि आपको अपने से छोटे (आयु में) व्यक्ति से पानी मंगाना है तो व्यावहारिक हिंदी में आप कहेंगे की 'जरा पानी ले अइयो' , परन्तु पढाई जाने वाली हिंदी में 'अइयो' शब्द होता ही नहीं है। 

जैसा ऊपर उल्लेख किया गया है , समय के साथ हमारी आधुनिक हिंदी में अंग्रेजी और फारसी के बहुत सारे शब्द समाहित हो गए हैं। ऐसा नहीं है उन शब्दों के हिंदी समकक्ष उपलब्ध नहीं हैं , परन्तु पीढ़ियों से हमारी उन शब्दों को प्रयोग करने की आदत हो गयी है। यह आदत रातों रात तो नहीं बदल सकती परन्तु यदि हम कोशिश (प्रयत्न) करें और हम एक शब्द एक महीने में भी शुद्ध हिंदी का प्रयोग करने के आदत डाल लें तो अपनी अगली पीढ़ी को हम थोड़ी अधिक शुद्ध हिंदी विरासत (उत्तराधिकार) में देकर जायेंगे। और हो सकता है कि कुछ पीढ़ियों बाद बिल्कुल शुद्ध हिंदी हमारे देश में बोली जाये।  कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती , धन्यवाद। 


मित्रो , यदि आपके पास हिंदी विषय पर कोई रोचक जानकारी है जो आप इस ब्लॉग पर प्रकाशित करना चाहते हैं तो मुझे rekhashar76@gmail.com पर बताएं। Friend, if you have any good story which you wish to publish at this blog, then please let me know at rekhashar76@gmail.com

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