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कृष्ण भगवान पांडवों के समक्ष कर्ण की बार बार प्रशंसा किया करते थे , परन्तु पांडवों को उनका कर्ण की प्रशंसा करना बिल्कुल भी रास नहीं आता था , पर वो संकोचवश कुछ नहीं बोल नहीं पाते थे। एक बार अर्जुन ने कृष्ण भगवान से पूछ ही लिया कि वे हमेशा कर्ण की प्रशंसा क्यों करते हैं , जबकि पांडव उनको सदा अधिक आदर सम्मान देते हैं। कृष्ण भगवान इस प्रश्न के पीछे छिपी अर्जुन की ईर्ष्या की भावना को भांप गए। सीधे उत्तर देने की बजाय उन्होंने उदाहरण के माध्यम से अर्जुन तो समझाना बेहतर समझा। समय आने पर इसका उत्तर अवश्य दूंगा , ऐसा कहकर कृष्ण भगवन चले गये।
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कुछ माह पश्चात् बरसात का मौसम आया। चारों ओर जल ही जल हो गया। तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन के पास आकर सूखी लकड़ियां मांगी। बारिश का मौसम होने के कारण सूखी लकड़ियाँ मिलना संभव ना था इसलिए अर्जुन ने ऐसा कर पाने में अपनी असमर्थता प्रकट की। भगवान कृष्ण के अत्यधिक आग्रह करने पर अर्जुन ने कुछ माह के पश्चात् उनको सूखी लकड़ियाँ देने का वचन दिया। भगवान कृष्ण जब अर्जुन का उत्तर सुन कर निश्चित हो गए कि अर्जुन उनकी इस विषय में कोई सहायता नहीं कर सकता , तब उन्होंने अर्जुन से कहा कि समय आ गया है अर्जुन के उस प्रश्न का उत्तर देने का की वे हमेशा कर्ण की प्रशंसा क्यों किया करते हैं। चलो अर्जुन , मेरे साथ चलो , देखने के लिए कि कर्ण इस बरसात के मौसम में भी सूखी लकड़ियाँ कैसे देता है , कृष्ण ने अर्जुन से कहा। अर्जुन मन ही मन कर्ण की होने वाली परीक्षा से बहुत खुश हो गया क्योंकि उसको लगभग पूर्ण विश्वास था कि उस की भांति कर्ण भी बरसात के कारण भगवान कृष्ण को सूखी लकड़ियाँ नहीं दे पायेगा।
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कृष्ण और अर्जुन एक ब्राह्मण का वेश धारण कर कर्ण के पास पहुंचे। याचक ब्राह्मणों को आया देख , कर्ण ने स्वयं उनका आदर सत्कार कर उनको आसन प्रदान किया और उनसे उनके आने का प्रयोजन पूछा। ब्राह्मण वेषधारी कृष्ण भगवान ने कर्ण से दान में सूखी लकड़ियों की याचना की। बरसात के मौसम में सूखी लकड़ियाँ मिलना असंभव था यह सोचकर कर्ण कुछ समय के लिए असमंजस में पड़ गया। लेकिन अपने द्वार से याचक को खली हाथ ना लौटाने के लिए वो प्रतिबद्ध था। शीघ्र ही उसने अपना धनुष बाण उठाया और अपने महल के दरवाजे तोड़कर सूखी लकड़ियाँ भगवान कृष्ण के चरणों में रख दीं। यह देख भगवान कृष्ण मंद मंद मुस्कुराने लगे और अर्जुन का सिर शर्म से झुक गया। कृष्ण भगवान ने उसे प्रत्यक्ष उदहारण देकर समझा दिया था की उसमे और कर्ण में क्या अंतर है और क्यों वो कर्ण के हमेशा प्रशंसा करते रहते हैं।
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