मित्रो , एक बार एक तालाब में एक मगरमच्छ रहता था। तालाब के किनारे पर एक पेड़ था जिस पर एक बन्दर रहता था। वे दोनों अच्छे मित्र थे। अक्सर मगरमच्छ तालाब के किनारे पर आ जाता था और बन्दर उसको पेड़ से तोड़ कर मीठे मीठे फल खिलाता था।
एक बार मगरमच्छ ने बन्दर को उसके घर भोजन का न्योता दिया। मित्र के न्योते को बन्दर ने सहज ही स्वीकार कर लिया। परन्तु मित्र , तुम्हारा घर तो पानी में है , मैं वहाँ जाऊंगा कैसे , बन्दर ने पूछा। तुम बिलकुल चिंता मत करो मित्र , तुम्हें ले जाने की जिम्मेदारी मेरी है , तुम मेरी पींठ पर बैठ जाना, मैं तुन्हें ले चलुंगा , मगरमच्छ ने उत्तर दिया। मगरमच्छ के उत्तर से बन्दर संतुष्ट हो गया। नियत समय पर मगरमच्छ बन्दर को लेने के लिए आ गया। बन्दर उछल कर मगरमच्छ की पींठ पर बैठ गया और मगरमच्छ उसको तालाब के अंदर ले चला। जैसे ही मगरमच्छ बन्दर को लेकर गहरे पानी में पंहुचा , बन्दर को बहुत घबराहट होनी शुरू हो गयी। उसने अपने मित्र मगरमच्छ को अपनी घबराहट प्रकट की। बन्दर ने मगरमच्छ से कहा , "मित्र , मैं आज से पहले इतने गहरे पानी में कभी नहीं गया , मुझे सब और पानी देखकर बहुत घबराहट हो रही है "। बन्दर को असहाय जानकर मगरमच्छ ने उससे कहा कि "मित्र , अब जब तुम आ ही गए हो तो मैं तुम्हें सब सच बताता हूँ। दरअसल जो मीठे फल तुम मुझे रोज खिलाते थे , उसमें से कुछ मैं अपनी पत्नी को लाकर देता था। मेरी पत्नी ने मुझसे कहा था कि जो इतने मीठे फल रोज खाता है उसका दिल भी अवश्य ही मीठा होगा। मेरी पत्नी ने मुझसे तुम्हारा दिल खाने की इच्छा प्रकट की थी और इसीलिए मैं तुन्हें अपनी पत्नी के पास ले जा रहा हूँ " ।
यह सुनकर बन्दर बहुत ही घबरा गया। उसको चारों ओर पानी ही पानी दिखाई दे रहा था और बचकर भागने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। बन्दर समझ गया कि वो फंस चुका है और घबराने का कोई फायदा नहीं है, यदि जान बचानी है तो उसे कोई युक्ति सोचनी पड़ेगी। विपत्ति के समय भी अपना मानसिक संतुलन न खोते हुए उसने मगरमच्छ से कहा की , "बस इतनी सी बात, मित्र तुमने पहले क्यों नहीं बताया , अपना दिल तो मैं पेड़ पर ही छोड़ आया। अब दिल लाने के लिए पेड़ पर वापिस जाना पड़ेगा। "
मगरमच्छ बन्दर की बातों में आ गया और वह बन्दर को लेकर किनारे की ओर चल पड़ा। किनारे पर आते ही बन्दर उछलकर पेड़ पर चढ़ गया और उसने अपनी जान बचाई।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्र का चुनाव सोच समझकर करना चाहिए और विपत्ति के समय भी संयम एवं विवेक से काम लेना चाइये।
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