हिंदी में तेनालीराम की कहानियाँ (Tenali Rama Stories in Hindi - Part 1)

Tenali Rama Stories in Hindi - Part 1

तेनालीराम और देवी का वरदान

एक बार तेनालीराम को एक साधु ने काली माता की उपासना करने की सलाह दी। तेनालीराम की पूजा से प्रसन्न होकर काली माता ने उसे दर्शन दिए। काली माता को साक्षात् देखकर , तेनालीराम हंसने लगा। माता ने तेनालीराम से उसके हँसने का कारण पूछा तो तेनालीराम ने कहा , "माँ , मुझे जुकाम होने पर मेरी एक नाक में मुझे इतनी परेशानी होती है तो आपके तो इतने सारे सिर हैं , आपको कितनी परेशानी होती होगी , यही सोचकर मुझे हँसी आ गयी। " माता को तेनालीराम का विनोद करना अच्छा लगा और माता में कहा , "पुत्र, मैं तुम्हारी पूजा से प्रसन्न होकर तुम्हें आशीर्वाद देने आयी हूँ। " तभी तेनालीराम के सम्मुख दो कटोरियाँ प्रकट हुईं। उनमें से एक में दूध और दूसरी में दही था। माता ने कहा , "तुम इनमें एक एक कटोरी से खा सकते हो , तुम स्वयं कटोरी चुन लो , दूध तुम्हे बुद्धिमता प्रदान करेगा और दही तुम्हें धन प्रदान करेगा। " तेनालीराम ने चतुराई का परिचय दिया और एक कटोरी का पदार्थ दूसरी कटोरी में मिला दिया और दूसरी कटोरी से दोनों पदार्थ खा गया। इस प्रकार उसने माता के आदेश का भी पालन कर किया , जिसके अनुसार वो एक ही कटोरी से खा सकता था , और अपनी चतुराई से माता से बुद्धिमता और धन दोनों प्राप्त कर लिए।

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तेनालीराम और कोड़ों की सजा

एक बार तेनालीराम ने अपनी कला का प्रदर्शन राजदरबार में करने की सोची। बस फिर क्या था , वो निकल पड़ा राज महल की ओर। किंन्तु जब वहाँ पहुँच कर उसने राजमहल में प्रवेश करना चाहा तो , द्वार पर पहरेदार ने उसे रोक दिया। तेनालीराम ने पहरेदार से बहुत मिन्नतें कीं किन्तु पहरेदार का दिल बिलकुल भी न पसीजा। तब तेनालीराम ने उस पहरेदार से कहा , "भाई , मैं एक कलाकार हूँ।  अपनी कला के प्रदर्शन से राजा को खुश करके कुछ पारितोषिक की आशा से आया हूँ।  मुझे जो भी पारितोषिक मिलेगा , तुम उसमें से आधा ले लेना , बस कृपा कर के मुझे अंदर जाने दो। " पहरेदार लालच में आ गया। उसने तेनालीराम को जाने दिया। तेनालीराम अंदर राजदरबार में गया। वहाँ दूर दूर से लोग अपनी प्रतिभा दिखाने आये थे।  तेनालीराम ने भी अपनी कला का प्रदर्शन किया। राजा कृषणदेवराय बहुत प्रसन्न हुए। प्रसन्न होकर उन्होंने तेनालीराम से कोई भी पुरस्कार मांगने के लिए कहा। तेनालीराम ने हाथ जोड़कर कहा , "महाराज यदि देना ही है तो मुझे 50 कोड़ों की सजा दीजिये। " महाराज आश्चर्यचकित हो गए , इतना बुद्धिमान व्यक्ति ऐसा पारितोषिक मांग रहा है। महाराज ने कहा , "यह तुम क्या कह रहे हो, एक बार पुनः विचार कर लो। " तेनालीराम ने कहा , "सोच लिया महाराज , मुझे पारितोषिक में पचास कोड़े ही खाने हैं। " राजा कृष्णदेवराय ने असमंजस की स्तिथि में तेनालीराम को 50 कोड़े मारने का आदेश दे दिया। जैसे ही तेनालीराम को कोड़े मारने का काम प्रारम्भ हुआ , वो बोला , "ठहरिये महाराज , बाहर खड़ा पहरेदार मुझे अंदर नहीं आने दे रहा था , पुरुस्कार का आधा हिस्सा उसे देने का वचन देने पर ही उसने मुझे अंदर आने दिया , इसलिए मेरी आपसे प्रार्थना है कि पहले 25 कोड़े उसे मारकर , मेरा वचन पूरा किया जाये। " तेनालीराम की बात सुनकर राजा ने पहरेदार को अंदर बुलाने का आदेश दिया। पहरेदार के अंदर आने पर राजा ने उससे तेनालीराम की बात की सच्चाई पूछी। पहरेदार ने घबराकर सच स्वीकार कर लिए। राजा ने पहरेदार को न केवल नौकरी से निकाल दिया , बल्कि सभी 50 कोड़े उसे ही मारने का आदेश दिया। तेनालीराम की बुद्धिमता से प्रसन्न होकर राजा ने उसे दरबार में ही नियुक्त कर लिया।

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तेनालीराम और जादूगर की चुनौती

एक बार राजा कृष्णदेवराय के दरबार में एक जादूगर आया। उसने तरह तरह के आश्चर्यजनक करतब दिखाकर जनता और दरबारियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अंत में उसने चुनौती दे डाली कि सम्पूर्ण विजयनगर में उसका मुकाबला कर सकने वाला कोई नहीं है। जादूगर की यह बात राजा कृष्णदेवराय और दरबारियों को बिलकुल भी अच्छी न लगी , परन्तु जादूगर की कला के सामने वो इस चुनौती को स्वीकार करने में अपने को अक्षम मान रहे थे। तभी दरबारियों में से तेनालीराम आगे आये। तेनालीराम को मोर्चा लेते देखकर सभी प्रसन्न थे क्योंकि सबको पता था कि उनमें केवल तेनालीराम ही जादूगर का मुकाबला अपनी बुद्धि से कर सकते थे। तेनाली राम ने घोषणा की , "महाराज , भले ही ये सज्जन अपनी कला में प्रवीण हों पर जो कार्य मैं साधारण सा मानव आँख बंद करके कर सकता हूँ , वो ये आँख खोलकर भी नहीं कर सकते। " जादूगर को अपनी कला पर बहुत घमंड था। वह एक आम आदमी से हारना नहीं चाहता था। उसने भी तेनालीराम की चुनौती को तुरंत स्वीकार कर लिया कि यदि वो तेनालीराम की चुनौती में हार गया तो अपनी चुनौती वापस ले लेगा और अपनी हार स्वीकार करके वापस चला जाएगा।

चुनौतियों की स्वीकार्यता के बाद , तेनालीराम ने सेवक को एक थाल में कुटी हुई लाल मिर्च और एक थाल में रेत लाने को कहा। सेवक आज्ञानुसार सामग्री ले आया। सभी लोग साँस रोककर तेनालीराम के कार्य को देख रहे थे।
तभी तेनाली राम ने अपने दोनों हाथों में थाली में से कुटी हुई लाल मिर्च और रेत उठाई , अपनी आखें बंद करीं और बंद आँखों पर लाल मिर्च और रेत डालने लगे। दो - चार मुट्ठी डालने के पश्चात् वो रुके और जादूगर की ओर देखते हुए बोले , "मान्यवर , अब आपकी बारी। " सब लोग और जादूगर तेनालीराम की चतुराई समझ गए।  जादूगर ने चुपचाप दरबार से खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझी।

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